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यां पू॑षन्ब्रह्म॒चोद॑नी॒मारां॒ बिभ॑र्ष्याघृणे। तया॑ समस्य॒ हृद॑य॒मा रि॑ख किकि॒रा कृ॑णु ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yām pūṣan brahmacodanīm ārām bibharṣy āghṛṇe | tayā samasya hṛdayam ā rikha kikirā kṛṇu ||

पद पाठ

याम्। पू॒ष॒न्। ब्र॒ह्म॒ऽचोद॑नीम्। आरा॑म्। बिभ॑र्षि। आ॒घृ॒णे॒। तया॑। स॒म॒स्य॒। हृद॑यम्। आ। रि॒ख॒। कि॒कि॒रा। कृ॒णु॒ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:53» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:18» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् को कैसे किसके लिये प्रेरणा करनी योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पूषन्) पुष्टि करनेवाले (आघृणे) सब ओर से न्याय के प्रकाश करनेवाले ! आप (याम्) जिस (ब्रह्मचोदनीम्) विद्या और धन की प्राप्ति के लिये प्रेरणा करने तथा काष्ठ के विभाग करनेवाली आरी को (बिभर्षि) धारण करते हो (तया) उससे (समस्य) तुल्य के समान अर्थात् जो सब में बुद्धिवाला है उसके (हृदयम्) हृदय को (आ, रिख) अच्छे प्रकार लिखो और (किकिरा) उत्तम गुणों को विकीर्ण (कृणु) करो फैलाओ ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! आप विद्या और धन की प्राप्ति की प्रेरणा के समान राजनीति को धारण करो, जिससे सब की न्यायव्यवस्था हो ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विदुषा कथं कस्मै प्रेरणा कार्येत्याह ॥

अन्वय:

हे पूषन्नाघृणे ! त्वं यां ब्रह्मचोदनीमारां बिभर्षि तया समस्य हृदयमा रिख किकिरा कृणु ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (याम्) (पूषन्) पुष्टिकर्त्तः (ब्रह्मचोदनीम्) विद्याधनप्राप्तये प्रेरिकाम् (आराम्) काष्ठविभाजिकाम् (बिभर्षि) (आघृणे) सर्वतो न्यायप्रकाशिन् (तया) (समस्य) तुल्यस्य (हृदयम्) (आ) (रिख) लिख (किकिरा) विकीर्णानि (कृणु) ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे राजँस्त्वं विद्याधनप्राप्तिप्रेरणामिव राजनीतिं धर येन सर्वेषां न्यायव्यवस्था स्यात् ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! तू विद्या व धन प्राप्त व्हावे अशी प्रेरणा देणारी राजनीती कर. ज्यामुळे सर्वांना व्यवस्थित न्याय मिळावा. ॥ ८ ॥